Wednesday, December 22, 2010

गुलिक/मांडी का प्रभाव

लग्न में गुलिक हो तो जातक :-
चोर जैसे स्वभाव का होता है, क्रूर होता है | अपने को सबसे ऊपर मानना या भेद भाव करना |
वेदों का ज्ञान न होना | मोटा न होना, आँखों में कमी होना, बुद्धू, ज्यादा खाना खाने वाला| काम भावना में रूचि न होना| आयु कम होना जातक डरपोक होगा| बिना सोचे समझे लड़ाई करने वाला |
परन्तु यदि गुलिक लग्न में गुरु के साथ हो तो व्यक्ति राजा के समान होता है|

गुलिक दूसरे भाव में हो तो
जातक किसी की झूठी तारीफ तक न ही करता है|हमेशा झगडा करता है और घर से दूर वास करता है| वाणी में दोष होता है| फ़िजूल की बातें करता है| वाद विवाद करता है| घूमने फिरने वाला, गुस्सैल, गन्दी भाषा बोलेगा | पैसे के बिना और पढाई के बिना जातक होगा |

गुलिक तीसरे भाव में हो तो
जातक अलग हो जायेगा | घमंड, गुस्सा जरूरत से ज्यादा पैसा बनाने के लिए इधर उधर घूमता रहेगा| जातक बिमारी से दूर रहेगा और भाई कम होंगे|

गुलिक चौथे भाव में हो तो
पढाई, पैसा, घर, सुख, वाहन का नुक्सान घूमता रहेगा | रिश्तेदार कम होंगे |

गुलिक पंचम भाव में हो तो
बुरा स्वभाव, आदतें, हिला हुआ दिमाग, कम बच्चे और छोटी जिंदगी होती है| तेज अंदर दर्द होता है|

गुलिक छठे भाव में
शत्रुओ का हंता, तंत्र मन्त्र करने वाला (काला जादू ), बहुत अच्छे बच्चे और बहादुर होगा |

गुलिक सांतवे घर में हो तो
झगडा करवाने वाला, बुरे स्वभाव/अपंग शरीर का जीवनसाथी, सब लोगो का विरोधी, कम दिमाग और एहसान न मानने वाला होता है|

गुलिक आठवें भाव में
खराब आँखें, विकल शरीर और छोटा कद , अचानक से मौत होगी | मौत का कारण विष, अग्नि या हथियार होंगे |

गुलिक नवम भाव में हो तो
माता पिता, पितरो और गुरुओ को नुक्सान पहुचाने वाला, नीच स्वभाव का काम करने वाला होगा|

गुलिक दशम भाव में हो तो
जातक बुरे स्वभाव का होगा वंश की परम्पराओ को नहीं मानेगा| जगह जगह भटकना पड़ेगा|

गुलिक ग्यारवें भाव में हो तो
जातक बहुत सुखी, धनी और अच्छे व्यक्तित्व का, बड़े भाई का हंता होता है| बहुत सारे वाहन और शिष्य होते है|

गुलिक बारहवे भाव में हो तो
दिखने में और कपडे पहनने की समझ नही होती है| दयनीय स्थिति, दुखी, सहायता के बिना और जुड़े हुए पैसे को खर्च करने वाला होता हैं | साफ़ सफाई की कमी रखता है|

गुलिक विभिन्न ग्रहों के साथ
गुलिक सूर्य :- पिता की आज्ञा नही मानेगा |
गुलिक चन्द्र :- माता को परेशानी, उसकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करेगा |
गुलिक मंगल :- भाइयों को परेशानी उसकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करेगा|
गुलिक बुध ;- उन्मादी और पागल होना |
गुलिक गुरु :- पाखंडी होगा |
गुलिक शुक्र :- स्त्री के कारण रोग होने से मृत्यु होना | निम्न चरित्र की पत्नी का पति होगा|
गुलिक शनि :- कुष्ट रोगी होना, अल्पायु होना |
गुलिक राहू :विष सेवन करना |
गुलिक केतु :-आग से खतरा और डर होता है|

Tuesday, December 14, 2010

राज योग के फल न्यून या अधिक ?


राज योग
राज योग से अभिप्राय ऐसे जीवन का हैं जिसमे आर्थिक रूप से न्यूनता न हो. जातक राज योगो का फल तब भोगता हैं जब राज योग बनाने वाले ग्रहों की दशा-अंतर्दशा हो. उस समय यदि गोचर भी सहायक हो तो फल निश्चित रूप से राजयोग कारक होता हैं. राजयोग पर विचार उनकी संख्या और बल से करना चाहिए.

१)        यदि २रे भाव का स्वामी एकादश भाव में हो और एकादश का स्वामी द्वितीय भाव में
२)      यदि पंचम का स्वामी और नवम का स्वामी की युति हो.
३)      यदि चौथे का स्वामी पंचम में और पंचम का स्वामी चौथे में हो.
४)      यदि चौथे के स्वामी का नवमेश से सम्बन्ध हो.
५)      यदि केतु केन्द्र/त्रिकोण में हो और उसकी युति केन्द्र त्रिकोण के स्वामी से हो.
६)       यदि राहू केन्द्र/त्रिकोण में हो और उसकी युति केन्द्र त्रिकोण के स्वामी से हो.
७)      दशमेश उच्च या स्वराशि का हो और दशमेश की लग्न पर दृष्टि हो.
८)      लग्न में शुक्र हो और उसका सम्बन्ध गुरु या चन्द्र से हो.
९)       गुरु नवम में स्वराशि का हो और शुक्र/पंचमेश की गुरु से युति हो.
१०)    ३-६-८-११वे भाव में नीच ग्रह हो और लग्नेश उच्च/स्वराशि का हो.
११)     सभी शुभ ग्रह केन्द्र में हो और क्रूर ग्रह त्रिषडाय भावो में हो.
१२)    त्रिकोण के स्वामियों की युति केन्द्र में हो.
१३)    पंचमेश और सप्तमेश का सम्बन्ध केन्द्र में हो.
१४)    पंचमेश का दशमेश से सम्बन्ध हो.
१५)   दशमेश नवमेश का परस्पर सम्बन्ध हो.
१६)    पूर्ण चन्द्र को उच्च और स्वक्षेत्री ग्रह देखता हो.
ज्योतिषीय किताबो में राज योगो की भरमार हैं. कोई न कोई राज योग प्रत्येक कुंडली में मिल जायेंगे. परन्तु इसका अर्थ यह नहीं की प्रत्येक व्यक्ति राज योग को भोगेगा. राज योगो को विभिन्न कसौटियो पर विचार कर ही फल कहना चाहिए. निम्न परिस्थितयो में राज योग के फल क्षीण हो जाते हैं. और परिणाम राज योगकारक नहीं होते.
१.        यदि राज योग निर्माण करने वाले ग्रह में एक क्षीण हो .
२.      यदि ग्रह युति ६-०८-१२ में हो.
३.      यदि ग्रह युति भाव संधि या राशि संधि पर हो.
४.      कुंडली में युति हो परन्तु नवांश में ग्रह निर्बल हो.
५.      यदि दोनों ग्रह दुभाव के स्वामी भी हो.
६.       युति पर पाप प्रभाव हो.
ऐसी स्थिति में स्वाभाविक रूप से ग्रह राज योग के फल देने में अक्षम हो जायेंगे. इन सभी कारकों का विचार कर हमे राज योग का फल देखना चाहिए. और यदि लग्न लग्नेश बलवान हो तो राज योग के फल में वृद्धि हो जाती हैं.
 
कुंडली में लग्नेश की युति धनेश और एकादशेश से हैं जो की राज योग हैं इस योग में योगकारक मंगल का जुडना राज योग को और प्रबल कर रहा हैं. पंचमेश गुरु और दशमेश शुक्र का भी प्रभाव हैं.
जातक का जन्म ऐसे परिवार में हुआ जहाँ पिता एक सरकारी अस्पताल में चिकित्सक और माता एक विद्यालय की प्रधानाचार्य, बाल्यावस्था से ही आर्थिक स्थिति मजबूत थी. अभी जातक टाटा उद्योग में एक इंजिनियर के पद पर कार्य रत हैं.

Saturday, November 20, 2010

नावंश की उपयोगिता

सभी वर्ग कुंडलियों में नवांश सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं. विम्शोपक बल में भी जन्म कुंडली के बाद सबसे महत्वपूर्ण नवांश ही हैं.विम्शोपक बल में लग्न कुंडली के बाद सबसे अधिक अंक नवांश को दिए गए हैं. जन्म कुंडली और नवांश को देख कर ही आप ग्रह किस नक्षत्र और चरण में हैं ज्ञात कर सकते हैं. ज्योतिषीय ग्रन्थ जैसे बृहत् पराशर होरा शास्त्र, जातक पारिजात, चंद्र नाडी कला, बृहत् जातक इत्यादि में नवांश के उपयोग कई स्थानों पर वर्णित हैं. मेरी सक्षमता के आधार पर मैं जितना समझ पाया वो आप सभी ज्योतिष प्रेमियों से बाँटना चाहूँगा.
नवांश के उपयोग :-
१) यदि ग्रह जन्म कुंडली में निर्बल अर्थात पाप ग्रहों से दृष्ट नीच का हो, अस्त हो परन्तु नवांश में बली हो तो ग्रह के पास बल होता हैं.
२) अस्त ग्रह यदि नवांश में सूर्य से २ भाव से अधिक दूरी पर हो तो अस्त ग्रह भी फल देने में सक्षम होता हैं.
३) कोई भी ग्रह यदि मित्र तथा सौम्य ग्रह के नवांश में हो तो उस ग्रह का फल अवश्य और शुभ मिलता हैं.
४) शुभ राशि में वर्गोत्तम ग्रह शुभ फल देता हैं.
५) क्रूर राशि में वर्गोत्तम ग्रह संघर्षो के बाद परिणाम देता हैं.
पर इस लेख में मैं नवांश पर नहीं नवांश के स्वामी पर चर्चा करना चाहता हूँ.
सारावली के अनुसार , चंद्र राशि हमारे स्वभाव को दर्शाती हैं परन्तु यदि जिस नवांश में चंद्र हैं उसका स्वामी अधिक बली हो तो स्वभाव नवांश के अनुसार होगा.
सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार, यदि चतुर्थ भाव का स्वामी जिस नवांश में हैं उसका स्वामी लग्न कुंडली में केन्द्र गत हो तो ऐसे जातक को घर-सम्पदा का सुख अवश्य प्राप्त होता हैं.
परन्तु यदि वह त्रिक भाव (६-८-१२) में हो तो ऐसे जातक को घर-सम्पदा के सुख की हानि होती हैं.
ऐसे श्लोक हमे बाध्य करते हैं की हम नवांश के स्वामी की स्थिति फल कथन से पहले अवश्य विचार लें.
जब सर्वार्थ चिंतामणी के श्लोक पर ध्यान देते हुए कुछ जानी पहचानी कुण्डलियाँ देखी तो परिणाम अद्भुत था. यदि भावेश का नवांश अधिपति लग्न कुंडली मे केंद्र अथवा त्रिकोण में बली हो तो उस भाव के फल अवश्य मिलते हैं.
और यदि भावेश का नवांश अधिपति निर्बल होकर त्रिक भावो में हो तो निश्चय ही उस भाव के फल में कमी आएगी

Wednesday, November 3, 2010

मंगल दोष : परिणाम और परिहार
                                                                                                                                                                                               -- एन. के.कश्यप
विवाह का अर्थ हैं दो जीवो का मिलन. यह मिलन जब तक बौधिक, मानसिक और शारीरिक रूप से हो तो विवाह अधुरा रहता हैं. परन्तु तीनो रूप से मिलन होना अत्यधिक दुष्कर हैं. मंगल उग्रता, हिंसा और उर्जा का प्रतिनिधित्व करता हैं. ऐसे में मंगल का वैवाहिक जीवन पर प्रभाव दुखद स्थिति उत्पन्न करता हैं. यही कारण हैं की जब भी भारतीय वैदिक परंपरा में विवाह के  बारे में विचार होता हैं, तो कुंडली मिलाई जाये या नहीं परन्तु मांगलिक दोष पर अवश्य विचार होता हैं . सभी ग्रहों में मंगल को सर्वाधिक अनिष्ट करने की पदवी दी जाती है .  कारण कुछ भी हो पर क्या मंगल इतना अनिष्ट्प्रद हैं?यदि हम वैदिक ज्योतिष ग्रंथो के द्वारा विचार करें तो हम पाएंगे की मंगल दोष की परिभाषा तो सही हैं परन्तु उसके परिहार पर बिना विचार किये हम मंगल दोष को अनिष्ट दाता मान लेते हैं जिस वैदिक ज्योतिष में मांगलिक दोष की परिभाषा दी गयी हैं उन्ही ग्रंथो में यह भी बताया गया हैं की मंगल दोष कब फलित नहीं होता. मंगल दोष का स्तर का आंकलन कैसे करना चाहिए. १० व्यक्तियों की कुंडली  में यदि मंगल दोष हैं तो हम यह देखते हैं की प्रति एक को मंगल दोष का परिणाम भिन्न भिन्न मिला . और परिणाम की मात्रा भी न्यून अधिक होती हैं. कारण स्पष्ट हैं की हमे मंगल दोष का नाम लेते समय उसका परिणाम क्या होगा यह भी जातक को बताना चाहिए.

मंगल दोष
मंगल दोष की परिभाषा के अनुसार लग्न से पहले दुसरे चौथे सांतवे आठवे या बारहवे भाव में मंगल हो तो मांगलिक दोष होता हैं. शुक्र विवाह का नैसर्गिक कारक हैं. यही विचार शुक्र से भी करना चाहिए. 'चन्द्रमा मनसो जातकः' अर्थात चद्रमा मनःस्थिति को दर्शाता हैं इसलिए मंगल दोष का विचार चन्द्र से भी किया जाता हैं .
प्रथम भाव हमारे स्वभाव को दर्शाता हैं,
द्वितीय भाव कुटुंब स्थान होता हैं
चतुर्थ भाव से हम पारिवारिक सुख  को देखते हैं .
सप्तम भाव जीवन साथी के स्वभाव को प्रदर्शित करता हैं.
अष्टम भाव  वैवाहिक काल को दर्शाता हैं.  
द्वादश भाव शयन सुख का हैं, जो की वैवाहिक सुख की नीव हैं.
निश्चय ही मंगल का इन भावो में होना वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं हैं..
लगन में मंगल जातक और उसके जीवन साथी (दोनों को प्रभावित करता हैं. ऐसी स्थिति में जातक अधिक उग्र होगा. छोटी छोटी बातो पर आवेशित हो जायेगा. जीवन साथी भी कभी कभी उग्र हो सकता हैं क्यूंकि मंगल की दृष्टि सप्तम पर भी हैं.
द्वितीय में मंगल होने पर जातक की वाणी कठोर होगी. और पत्नी के अष्टम में मंगल होने से वैवाहिक काल भी छोटा होगा अर्थात या तो सम्बन्ध टूट जायेगा या पत्नी की आयु कम रहेगी.

चतुर्थ में मंगल, परिवार में अशांति का सूचक हैं यह योग अचल सम्पति के लिए तो शुभ हैं परन्तु परिवार के लिए सुखद नही हैं. यहाँ से मंगल की चौथी दृष्टि सप्तम पर होगी जिसके कारण जीवन साथी उग्र, उर्जावान होगा. कई बार हिसंक रूप भी ले  सकता हैं.

सप्तम में मंगल जीवन साथी में उग्रता का सूचक हैं. स्थिति लगन में मंगल से विपरीत होगी.

अष्टम का मंगल सर्वाधिक अशुभ माना गया हैंअष्टम का मंगल जातक की आयु के लिए शुभ नहीं हैं . क्योंकि मंगल आयु के दोनों भावो अष्टम, और अष्टम से अष्टम तृतीय भाव को प्रभावित करता हैं. यदि ऐसे में मंगल दुह्स्थान अधिपति हो तो स्थिति अत्याधिक अशुभ हो जाती हैं.

द्वादश का मंगल शारीरिक मिलन में कडवाहट उत्पन्न करता हैं. यहाँ से मंगल की अष्टम दृष्टि सप्तम भाव पर होती हैं जिसके कारण जीवन साथी में उग्रता रहती हैं.

मांगलिक दोष के अलावा अन्य पाप ग्रहों के प्रभाव भी उपरोक्त भावो पर हो तो वैवाहिक जीवन दुखद करते हैं

मंगल उग्रता, हिंसा और उर्जा का प्रतिनिधित्व करता हैं. ऐसे में मंगल का वैवाहिक जीवन पर प्रभाव दुखद स्थिति उत्पन्न करता हैं. वैदिक ज्योतिष में मंगल दोष पर काफी श्लोक मिल जायेंगे पर आज ज्योतिषी केवल मंगल दोष की परिभाषा से ही आम जनता में भय पैदा करते  हैं




यदि मंगल चर राशी में हो तो मंगल दोष नहीं होता हैं.
यदि मंगल सिंह,वृशिचिक, कर्क मेष राशी में हो तो मंगल दोष नहीं होता हैं
यदि मंगल स्वनवंश में हो तो भी मंगल दोष नहीं होता हैं
मंगल बुध की युति भी मंगल दोष का काट हैं.
मंगल गुरु की युति मंगल दोष का निवारण करती हैं.
यदि मंगल राहू के साथ हो तो मंगल दोष नहीं होता हैं.
यदि कन्या की कुंडली में बलि गुरु केंद्र त्रिकोण गत हो तो भी मंगल दोष नहीं होता हैं.
यदि कन्या वर के अष्ट कूट मिलान में अधिक अंक हो तो भी मंगल दोष नहीं होता हैं.
ज्योतिषी को मंगल दोष के नाम से डराना नहीं चाहिए बल्कि परामर्श देना चाहिए की मंगल दोष का स्तर अलग अलग होता हैं . कुछ कुंडली में यह विधुर - विधवा योग भी बनाता हैं और कुछ कुंडली में यह मंगल दोष नहीं मंगल योग बनाता हैं . उदहारण के लिए सिंह लगन में मंगल योग कारक होता हैं . यदि मंगल लगन में हो तो यह जातक को सुख स्मरिधि , भाग्यवृद्धि के योग देता हैं. की मंगल दोष का निर्माण करता हैं.  
मंगल दोष का विचार नवांश से भी किया जाता हैं . मंगल ऊर्जा का कारक हैं, यदि मंगल नवांश में पीड़ित हैं तो ऐसे जातक का विवाह ऐसी कन्या से करना चाहिए जिसके नवांश में मंगल पीड़ित हो . अन्यथा वैवाहिक जीवन असंतुलित हो जायेगा .शुक्र मंगल युति भी वैवाहिक जीवन को बिगाड़ सकती हैं इसलिए शुक्र मंगल युति के जातक का विवाह ऐसी कन्या से करना चाहिए जिसकी कुंडली में भोग के योग होइसमें कोई संदेह नहीं की मंगल हिंसा का कारक हैं उसके वैवाहिक जीवन पर प्रभाव पारिवारिक शांति को बिगाड़ देता हैं, पर हमे यह नहीं भूलना चाहिए की नैसर्गिक कारकत्वा के साथ साथ कुंडली में भाव कारकत्व भी होते हैंमंगल यदि योगकारक हैं तो ऐसा मंगल हानि कम लाभ अधिक देता हैं. मेरे गुरुजी मंगल दोष को तब तक हानि प्रद नहीं मानते जब तक मंगल के पास अशुभ भावाधिपत्य हो. मंगल दोष के निवारण हेतु पूजा अर्चना का विधान हैं.