Worship Deity


  • ·       कारकांश कुंडली में सूर्य केतु लग्न में हो, तो शिव भक्ति करें|
  • ·       कारकांश कुंडली में बृहस्पति  केतु लग्न में हो, तो शिव भक्ति करें|
  • ·       पंचम या एकादश में सूर्य हो तो शिव भक्ति करें|
  • ·       कारकांश कुंडली में लग्न में चन्द्र केतु हो तो गौरी का भक्त होता हैं|
  • ·       कारकांश कुंडली में लग्न में शुक्र केतु हो तो लक्ष्मी का भक्त होता हैं|
  • ·       पंचम स्थान से बृहस्पति का सम्बन्ध सरस्वती माँ का भक्त होता हैं|
  • ·       पंचम स्थान से शुक्र का सम्बन्ध दुर्गा माँ/चामुंडा देवी का भक्त होता हैं\
  • ·       पंचम स्थान में शुक्र और चंद्रमा का सम्बन्ध होता हो तो किसी भी देवी की पूजा करता है|
  • ·       कारकांश कुंडली लग्न में यदि बुध और शनि हो तो मनुष्य विष्णु भक्त होता है|
  • ·       चतुर्थ स्थान का स्वामी यदि पंचम स्थान में स्थित हो तो मनुष्य विष्णु भक्त होता है|
  • ·       कारकांश कुंडली लग्न में यदि केतु और मंगल  हो तो मनुष्य स्कन्द/हनुमान/कार्तिकेय  भक्त होता है|
  • ·       पंचम स्थान का सम्बन्ध मंगल से हो तो मनुष्य स्कन्द/हनुमान/कार्तिकेय  भक्त होता है|
  • ·       पंचम स्थान का सम्बन्ध बुध से हो तो सभी देवो का उपासक होता है|
  • ·       यदि पंचम का सम्बन्ध पुरुष ग्रह से हो तो देव भक्त होता है|
  • ·       द्वादश स्थान का स्वामी यदि द्वितीय या अष्टम स्थान में हो और पंचमेश से उसका सम्बन्ध हो तो मनुष्य सात्विक देव (ब्रह्मा/विष्णु) का भक्त होता है|
  • ·       पंचम स्थान के साथ यदि चन्द्र का कोई सम्बन्ध हो तो मनुष्य यक्षिणी का भक्त होता है|
  • ·       पंचम स्थान से शनि का सम्बन्ध होने पर मनुष्य भूत,प्रेत, शाकिनी आदि निम्न शक्ति का भक्त होता है|
  • ·       पंचम स्थान का सम्बन्ध राहू से हो तो मनुष्य दूसरों को कष्ट पहुचाने वाले का भक्त होता है|
  • ·       गुरु जिस राशि में हो उसका स्वामी जिस नवांश में हो उस नवांश का स्वामी यदि गुरु शुक्र से दृष्ट हो तो मनुष्य गुरु जनों का भक्त होता है| 


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