Jaimini Method

राशि दृष्टि
जैमिनी पद्धति में ग्रहों की दृष्टि न लेकर राशियो की दृष्टि का विचार होता हैं| ये कुछ ऐसा ही हैं की आप की दृष्टि भी बाहर का केवल वहीँ दृश्य देख सकती हैं जिस और कमरे की खिडकी हो|ग्रह जिस राशि में विराजमान हैं उस राशि की दृष्टि को अपनाकर ही ग्रह शेष ग्रहों और भावो को देख सकता हैं| राशियो की दृष्टि इस प्रकार हैं:-
चर राशि द्वितीय भाव को छोड़कर सभी स्थिर राशि को ही देख सकती हैं, उसी तरह स्थिर राशि बारहवें भाव को छोड़कर सभी चर राशियो को देख सकती हैं| द्विस्वभाव राशि में बैठा ग्रह सभी द्विस्वभाव राशि को देख सकता हैं| इस नियम को ध्यान में रखते हुए यदि कुंडली संख्या १ पर विचार करें तो लग्न क्योंकि स्थिर हैं इस कारण वश चर राशि(1-7-10) में बैठे ग्रह लग्न को देख सकते हैं परन्तु कर्क राशि लग्न से 12वे भाव में हैं इसलिए यदि कर्क में कोई ग्रह होता भी तो वेह लग्न पर दृष्टिगोचर नही कर सकता था|  सूर्य और चन्द्र चर राशि में स्थित हैं इसलिए उनकी दृष्टि लग्न पर हैं| दूसरे भाव में कन्या राशि हैं जो की द्विस्वभाव राशि हैं अतः द्विस्वभाव में बैठे ग्रह ही दूसरे भाव पर दृष्टिपात करेंगे| गुरु और शुक्र द्विस्वभाव राशि में हैं. इसलिए दूसरे भाव पर उनकी दृष्टि हैं|
 अर्गला का प्रभाव
जैमिनी पद्धति के अनुसार जिस भाव का विचार कर रहे हो उस भाव पर जिस ग्रह की दृष्टि हो, उस ग्रह से अर्गला का विचार करें, यदि अर्गला शुभ हो तो उस ग्रह की दशा में दृष्ट भाव के शुभ फल मिलेंगे परन्तु कुछ ज्योतिष विद का मत यह भी हैं की जिस भाव का विचार कर रहे हो उसी भाव से अर्गला का विचार करें, यदि अर्गला अशुभ हो तो उस ग्रह की दशा में बाधा आएगी|
अर्गला निर्माण भाव  अर्गला विरोधी भाव
द्वितीय भाव         द्वादश भाव
चतुर्थ भाव          दशम भाव
पंचम भाव          नवम भाव
एकादश भाव        तृतीय भाव
राहू केतु के लिए अर्गला विरोधी भाव अर्गला बनाने वाले बन जाते हैं और अर्गला निर्माता भाव अर्गला के लिए बाधक बन जाते हैं|
यदि कुंडली १ पर ध्यान दें तो लग्न पर सूर्य और चन्द्र(जैमिनी) दृष्टि हैं, कुंडली में सूर्य चन्द्र क्रमशः मातृकारक, अमात्यकारक कारक हैं| दोनों की दृष्टि लग्न पर होने से राज योग बन रहा है| सूर्य से दूसरे भाव में बुध(शुभ),मंगल (अशुभ) और केतु(अशुभ) अर्गला का निर्माण कर रहे हैं| सूर्य से १२भाव रिक्त हैं इसलिए अर्गला में बाधा नही आयीं| सूर्य से चौथे भाव में चन्द्र हैं और दशम भाव रिक्त हैं इसलिए एक शुभ अर्गला और बनी| सूर्य से पंचम में शनि स्थित होने से  एक अशुभ अर्गला का निर्माण हो रहा हैं परन्तु सूर्य से नवे भाव में गुरु होने के करण अर्गला बाध्य हो गयी हैं| कुल अर्गला सूर्य से जो बनी उनमे बुध चन्द्र शुभ अर्गला बना रहे हैं और मंगल केतु अशुभ अर्गला का निर्माण कर रहे हैं| चन्द्र से भी ५ अर्गला बन रही हैं| अब यदि लग्न से अर्गला गिने तो बुध,मंगल और राहू की अर्गला, पंचम में शुक्र के कारण अर्गला, एकादश भाव में गुरु की अर्गला पर सूर्य से वेह अर्गला टूट गयी| कुल ५ अर्गला जिनमे से तीन निर्बाधित अर्गला हैं| जातक ने साधारण परिवार में जन्म लिया परन्तु जीवन में उच्च शिखरों को छुआ|