पाकप्रभुर्गोचरतः स्वनीचम् मौढ्यं यदायाति विपक्षभम् वा |
कष्टं विदध्यात्स्वगृहं स्वतूङ्ग् वक्रं गतः सौख्यम फलं तदानीम् ||
जिस ग्रह की महादशा हो वः जब गोचर में अस्त हो या अनिष्ट राशि को प्राप्त होता है तो कष्ट कारक होता है| जिस गढ़ की दशा या अंतर दशा हो वह जब गोचर में स्वराशि या अपनी उच्च राशि को प्राप्त होता है या वक्री हो जाता है तो वह उस समय जातक को श्रेष्ठ फल देता है|