उत्तर भारत में अष्टकूट मिलान से वर और कन्या के भावी जीवन के बारे में बताया गया हैं| दोष सम्यक दक्षिण भारत में प्रचलित हैं| इस विधि में महत्वपूर्ण भाव निम्नलिखित है :-
लग्न :- जातक के स्वभाव को दर्शाता हैं, वैवाहिक जीवन में जातक का कितना योगदान रहेगा यह लग्न से विचार किया जाता हैं|
द्वितीय भाव :- जातक की वाणी किस प्रकार रहेगी इसका विचार दुसरे भाव से किया जाता है| यहाँ पर यदि क्रूर ग्रह स्थित हो तो जातक का स्वभाव अच्छा होने के बाद भी वाणी में दोष रहेगा और जातक अपनी बात सही तरीके से रखने में अक्षम होगा | इस भाव की उपयोगिता के कारण ३ बिंदु दिए गए है|
चतुर्थ भाव :- जातक की मनःस्थिति किस तरह की रहेगी, इसका विचार चौथे भाव से होता है| घर के माहौल किस तरह का रहेगा इसका विचार भी चौथे भाव से होता है| यदि चौथे भाव में क्रूर ग्रह स्थित हो तो घर का माहौल और मन की स्थिति दूषित होती है| इस कारण वश इस भाव को ३ बिंदु प्राप्त है|
सप्तम भाव :- जीवन साथी का व्यवहार और उसका चरित्र का विश्लेषण सप्तम भाव से होता है| यह भाव उपरोक्त भावो से अधिक महत्वपूर्ण होता है| इसके अंक ५ है |
अष्टम भाव :- यह भाव सौभाग्य और जीवन साथी की आयु का है| कन्याओ की कुंडली में इसकी महत्ता और अधिक होती है| इसमें बिंदु की संख्या ६ है जो की सर्वाधिक है|
द्वादश भाव :- यह शयन सुख को इंगित करता है| वैवाहिक जीवन में इस भाव की अपना एक अलग स्थान है| इस भाव को १ बिंदु प्राप्त है|
क्रूर ग्रहों के प्रभाव से यह भाव पीड़ित हो जाते है और वैवाहिक जीवन पर इसका प्रभाव ऋणात्मक पडता है| इस ऋणात्मक प्रभाव को मापने की विधि दोष सम्यक है| मंगल (४) वैवाहिक जीवन के लिए सबसे अनिष्टकारक है, तदुपरांत शनि (३), सूर्य(२), राहू(१) का प्रभाव होता है|
क) उपरोक्त ६ भावो में यदि मंगल, शनि, सूर्य और राहू ग्रह हो तो भाव के बिंदु को ग्रह के बिंदु से गुणा करें|
ख) (क) से प्राप्त बिन्दुओ का योग करें |
ग) यही प्रक्रिया चन्द्र लग्न और शुक्र लग्न से करें| चन्द्र लग्न से प्राप्त बिन्दुओ को आधा और शुक्र लग्न से प्राप्त बिन्दुओ का चौथाई करे|
घ) वर-वधु के बिन्दुओ को अलग अलग जोड़ें| जिस के बिंदु अधिक हो उस प्रतिभागी की ओर से वैवाहिक जीवन में सहयोग कम मिलेगा|
ङ) बिन्दुओ का अंतर यदि २० से अधिक हो तो वैवाहिक जीवन शुभ नही होता है| सम्बन्ध विच्छेद तक की समस्या आ सकती है|
दोष सम्यक
भाव ग्रह भाव संख्या ग्रह संख्या गुणाफल
लग्न राहू 3 1 3
द्वितीय शुक्र ३ ० ०
चतुर्थ बुध ३ ० ०
सप्तम --- ५ ० ०
अष्टम --- ६ ० ०
द्वादश --- १ ० ०
योग ३
इसी तरह चन्द्र कुंडली से योग ३ आया और उसका आधा करने पर शेष १.५ बचा|
इसी तरह शुक्र कुंडली से योग २२ आया और उसका चतुर्थ भाग ५.५ बचा| तीनो संख्या का योग करने पर १० आया | इस कारण कन्या का दोष सम्यक १० आता है |
पति का दोष सम्यक २३ हैं | जो की कन्या के दोष सम्यक से काफी अधिक हैं इस कारण वर कन्या पर हावी रहेगा |