ज्योतिषी से यह आशा की जाती है की वह जीवन में घटित होने वाली संभावित घटनाएं और उनके घटित होने का सही समय प्रश्नकर्ता को बता सकें| उदाहरण के लिए यदि कोई जातक विवाह सम्बंधित प्रशन के साथ आपके पास आया हैं तो ज्योतिषी से यह आशा करेगा की वह यह बताए की
१) जातक को विवाह सुख हैं भी या नहीं, और यदि हैं तो
२) किस समय तक विवाह हो पायेगा ?
वर्ग कुंडली पहले प्रश्न के उत्तर में सहायक है और दशा दूसरे प्रश्न के उत्तर में|
वर्ग कुंडली :- वर्ग कुंडली जातक के जीवन के विभिन्न पहलुओ पर सूक्ष्म विश्लेषण करने में सहायक है| जन्म कुंडली में एक भाव से कई कारकों का विचार होता है| इस स्थिति में वर्ग कुण्डलियाँ हमे सही कारक तक पहुचाने में सहायक होती है| उदाहरण के लिए पंचम भाव संतान, पितामह, बुद्धि एवं मंत्रणा आदि का कारक है| वर्ग कुण्डलियाँ इन कारकों को अलग अलग कुंडली में प्रदर्शित करती है | संतान का विचार सप्तमांश (D-7) से, बुद्धि एवं मंत्रणा के लिए चतुर्विम्शांश(D-24) से और पितामह का D-12 से विचार किया जाता है| विभिन्न वर्गों से प्रदर्शित कारकों का वर्णन निम्नलिखित है :
संज्ञा भाव कारक
होरा द्वितीय धन
देष्काण तृतीय सहोदर
द्वादांश चतुर्थ माता
सप्तांश पंचम पुत्र
नवांश सप्तम जीवनसाथी/ग्रहों का बलाबल
दशांश दशम कार्यक्षेत्र/व्यवसाय
द्वादांश नवम पिता
चतुर्विम्शांश विद्या/बुद्धि
त्रिम्शांश अनिष्ट
ऋषि पराशर ने वर्ग कुंडली के प्रत्येक भाग को एक संज्ञा से संबोधित किया है| उस संज्ञा से जातक के विषय में गूढता से पता चलता है| उदहारण के लिए डी-३ में नारद, अगत्स्य और दुर्वासा शब्दों का प्रयोग किया है| नारद :- सभी स्थानों पर आनंद लेने वाला, समाचार को फैलाने वाला | अगत्स्य ऋषि : सभी के प्रति सम भाव रखने वाला, स्थिर प्रकृति का और दुर्वासा ऋषि:- क्रोधी स्वभाव आदि
के बारे में ज्ञान देता है|
D-12 का एक और वर्गीकरण
बृहत् पराशर होरा शास्त्र में द्वादांश को गणेश, अश्विनी कुमार, सर्प और यम की संज्ञा दी गयी है| द्वादांश के एक और वर्गीकरण से परिचित कराया| ये इस प्रकार है :-
अंश नाम
0-2:30 कुबेर (धनी)
02:30-05;00 पतंग (आग)
05:00-07:30 हाला (मद)
07:30-10:00 किरीटी (जिसने मुकुट पहना हो)
10:00-12:30 विह्वल (अस्थिर मति वाला)
12;30-15:00 मायावी(ठगने वाला)
15:00-17:30 मोहन (आकर्षित करने वाला )
17;30-20:00 किन्नर (दूसरों का गुणगान करने वाला)
20;00-22:30 सर्प (जहर उगलने वाला)
22:30-25:00 इन्द्र(राजा)
25:00-27:30 लीला (कलाकार)
27:30-30:00 कोकिल (मीठा बोलने वाला)
दशा नाथ
दशा नाथ का शाब्दिक अर्थ है ‘स्थिति का स्वामी’ जातक की कुंडली में कई राज योग है, परन्तु वर्तमान में वह कैसा है इसका ज्ञान हमे दशा नाथ देता है|
कई कुंडलियों में प्रबल राजयोग होने के उपरान्त भी सही दशा न मिलने के कारण जातक उन शिखरों तक नही पहुच पाता जिसके वो लायक है, और इसके विपरीत कई साधारण योग की कुंडली में अच्छी दशा मिलने के कारण वो जीवन में काफी प्रगति करता है| दशा जातक की दिशा निर्धारित करती है, सारावली के अनुसार,
स्वदोषगुण योगेन स्वदशासु फलप्रदाः ||
अर्थात जिस तरह के गुण और दोष से ग्रह युक्त होगा अपनी दशा में वह उसी के अनुसार वो फल देता है| ऋषि पराशर ने कई दशाओ का वर्णन किया है | दशा दो प्रकार की होती है |
१) कुछ दशाएं सभी जातको पर लगाईं जा सकती है| जैसे विंशोत्तरी, चर दशा, काल चक्र दशा आदि |
२) कुछ दशाएं केवल तभी लागू होती है जब कुंडली में कुछ विशेष योग हो जैसे यदि सप्तम का स्वामी लग्न में या लग्न का स्वामी सप्तम में हो तो द्विसप्ति सम दशा लागू होती है, दशमेश यदि दशम भाव में हो तो चतुर्शिती सम दशा लागू होती है|
परन्तु ऋषि पराशर ने विंशोत्तरी को सर्वोत्तम और सर्वमान्य माना है|
इस लेख में विंशोत्तरी दशा और वर्ग दोनों के सामजस्य से होने वाली घटना का समयकाल बताने का प्रयास किया गया है| घटना के समय दशानाथ के गोचर पर ध्यान केंद्रित करेंगे की वो किस प्रकार जिस भाव से सम्बंधित फल मिला हैं उसे प्रभावित कर रहा है | साथ ही उस भाव से सम्बंधित वर्ग कुंडली में इन तीनो का क्या योगदान है |
भाव का प्रतिनिधित्व पाराशरी पद्धति में स्वयं भाव, उसका स्वामी और भाव का कारक करते हैं हम इन तीनो पर दशानाथ का गोचर किस प्रकार है इस पर विचार करेंगे | यदि दशानाथ गोचर में इन तीनो में से किसी एक से दृष्टि युति का सम्बन्ध बना रहा हैं तो यह अति शुभ संकेत हैं, इन तीनो से दशानाथ का त्रिक भाव (६-८-१२) में गोचर अशुभ है| साथ ही वर्ग कुंडली में दशानाथ लग्न लग्नेश और कारक से कहाँ गोचर कर रहे हैं इस पर भी ध्यान केंद्रित करेंगे|
शेष अगले सप्ताह ..........