Tuesday, March 29, 2011

दशानाथ गोचर और वर्ग कुंडली


ज्योतिषी से यह आशा की जाती है की वह जीवन में घटित होने वाली संभावित घटनाएं और उनके घटित होने का सही समय प्रश्नकर्ता को बता सकें| उदाहरण के लिए यदि कोई जातक विवाह  सम्बंधित प्रशन के साथ आपके पास आया हैं तो ज्योतिषी से यह आशा करेगा की वह यह बताए की 
१)      जातक को विवाह  सुख हैं भी या नहीं, और यदि हैं तो
२)     किस समय तक विवाह  हो पायेगा ?                                        
वर्ग कुंडली पहले प्रश्न के उत्तर में सहायक है और दशा दूसरे प्रश्न के उत्तर में|
वर्ग कुंडली :- वर्ग कुंडली जातक के जीवन के विभिन्न पहलुओ पर सूक्ष्म विश्लेषण करने में सहायक है| जन्म कुंडली में एक भाव से कई कारकों का विचार होता है| इस स्थिति में वर्ग कुण्डलियाँ हमे सही कारक तक पहुचाने में सहायक होती है| उदाहरण के लिए पंचम भाव संतान, पितामह, बुद्धि एवं मंत्रणा आदि का कारक है| वर्ग कुण्डलियाँ इन कारकों को अलग अलग कुंडली में प्रदर्शित करती है | संतान का विचार सप्तमांश (D-7) से, बुद्धि एवं मंत्रणा के लिए चतुर्विम्शांश(D-24) से और पितामह का D-12 से विचार किया जाता है| विभिन्न वर्गों से प्रदर्शित कारकों का वर्णन निम्नलिखित है :
संज्ञा     भाव      कारक
होरा         द्वितीय       धन
देष्काण      तृतीय       सहोदर
द्वादांश       चतुर्थ        माता
सप्तांश       पंचम        पुत्र
नवांश       सप्तम        जीवनसाथी/ग्रहों का बलाबल
दशांश       दशम        कार्यक्षेत्र/व्यवसाय
द्वादांश       नवम        पिता 
चतुर्विम्शांश               विद्या/बुद्धि
त्रिम्शांश                  अनिष्ट
ऋषि पराशर ने वर्ग कुंडली के प्रत्येक भाग को एक संज्ञा से संबोधित किया है| उस संज्ञा से जातक के विषय में गूढता से पता चलता है| उदहारण के लिए डी-३ में नारद, अगत्स्य और दुर्वासा शब्दों का प्रयोग किया है| नारद :- सभी स्थानों पर आनंद लेने वाला, समाचार को फैलाने वाला | अगत्स्य ऋषि : सभी के प्रति सम भाव रखने वाला, स्थिर प्रकृति का और दुर्वासा ऋषि:- क्रोधी स्वभाव आदि 
के बारे में ज्ञान देता है|

D-12 का एक और वर्गीकरण
बृहत् पराशर होरा शास्त्र में द्वादांश को गणेश, अश्विनी कुमार, सर्प और यम की संज्ञा दी गयी है| द्वादांश के एक और वर्गीकरण से परिचित कराया| ये इस प्रकार है :-
अंश               नाम
0-2:30            कुबेर (धनी)
02:30-05;00       पतंग (आग)
05:00-07:30       हाला (मद)
07:30-10:00      किरीटी (जिसने मुकुट पहना हो)
10:00-12:30       विह्वल (अस्थिर मति वाला)
12;30-15:00       मायावी(ठगने वाला)
15:00-17:30       मोहन (आकर्षित करने वाला )
17;30-20:00      किन्नर (दूसरों का गुणगान करने वाला)
20;00-22:30      सर्प (जहर उगलने वाला)
22:30-25:00      इन्द्र(राजा)
25:00-27:30      लीला (कलाकार)
27:30-30:00      कोकिल (मीठा बोलने वाला)

दशा नाथ
दशा नाथ का शाब्दिक अर्थ है ‘स्थिति का स्वामी’ जातक की कुंडली में कई राज योग है, परन्तु वर्तमान में वह कैसा है इसका ज्ञान हमे दशा नाथ देता है|
कई कुंडलियों में प्रबल राजयोग होने के उपरान्त भी सही दशा न मिलने के कारण जातक उन शिखरों तक नही पहुच पाता जिसके वो लायक है, और इसके विपरीत कई साधारण योग की कुंडली में अच्छी दशा मिलने के कारण वो जीवन में काफी प्रगति करता है|  दशा जातक की दिशा निर्धारित करती है, सारावली के अनुसार,
 स्वदोषगुण योगेन स्वदशासु फलप्रदाः ||
अर्थात जिस तरह के गुण और दोष से ग्रह युक्त होगा अपनी दशा में वह उसी के अनुसार वो फल देता है| ऋषि पराशर ने कई दशाओ का वर्णन किया है | दशा दो प्रकार की होती है |
१)      कुछ दशाएं सभी जातको पर लगाईं जा सकती है| जैसे विंशोत्तरी, चर दशा, काल चक्र दशा आदि |
२)     कुछ दशाएं केवल तभी लागू होती है जब कुंडली में कुछ विशेष योग हो जैसे यदि सप्तम का स्वामी लग्न में या लग्न का स्वामी सप्तम में हो तो द्विसप्ति सम दशा लागू होती है, दशमेश यदि दशम भाव में हो तो चतुर्शिती सम दशा लागू होती है|
परन्तु ऋषि पराशर ने विंशोत्तरी को सर्वोत्तम और सर्वमान्य माना है|


इस लेख में विंशोत्तरी दशा और वर्ग दोनों के सामजस्य से होने वाली घटना का समयकाल बताने का प्रयास किया गया है| घटना के समय दशानाथ के गोचर पर ध्यान केंद्रित करेंगे की वो किस प्रकार जिस भाव से सम्बंधित फल मिला हैं उसे प्रभावित कर रहा है | साथ ही उस भाव से सम्बंधित वर्ग कुंडली में इन तीनो का क्या योगदान है |
भाव का प्रतिनिधित्व पाराशरी पद्धति में स्वयं भाव, उसका स्वामी और भाव का कारक करते हैं हम इन तीनो पर दशानाथ का गोचर किस प्रकार है इस पर विचार करेंगे | यदि दशानाथ गोचर में  इन तीनो में से किसी एक से दृष्टि युति का सम्बन्ध बना रहा हैं तो यह अति शुभ संकेत हैं, इन तीनो से दशानाथ का त्रिक भाव (६-८-१२) में गोचर अशुभ है| साथ ही वर्ग कुंडली में दशानाथ लग्न लग्नेश और कारक से कहाँ गोचर कर रहे हैं इस पर भी ध्यान केंद्रित करेंगे|

शेष अगले सप्ताह ..........


Thursday, March 3, 2011

गर्भस्थ शिशु पुत्र या पुत्री ?


गर्भस्थ शिशु के लिंग पर आधारित प्रश्न कई बार पूछे जाते हैं, इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर देने से बचना चाहिए क्योंकि कहीं इस कारण से आप भ्रूण हत्या के दोषी न बन जाएँ| यदि आप आश्वस्त हैं की आपके उत्तर से शिशु पर कोई प्रभाव नही पड़ेगा तभी आप ज्योतिषीय ज्ञान से उत्तर देने का प्रयास करें| लिंग आधारित प्रश्नों के उत्तरों पर कई प्रकार से विचार होता है| उनमे जो प्रमुख हैं वे इस प्रकार हैं :
राशि और ग्रह के योग :- प्रश्न कर्ता यदि प्रथम संतान पर विश्लेषण चाहता हैं तो पंचम भाव में स्थित ग्रह से विचार करें, यदि भाव रिक्त हो तो पंचम भाव पर दृष्टि और तदुपरांत राशि पर ध्यान दें|
इसी प्रकार पंचम भाव का स्वामी की युति, फिर उस पर दृष्टि और अंत में राशि जिस में पंचमेश स्थित है उस पर विचार करें| दोनों में जिस की अधिकता हो उसके अनुसार फल कहें|

उपरोक्त कुंडली में पंचम भाव में केतु स्थित हैं, उस पर शनि (स्त्री/नपुंसक) ग्रह की दृष्टि हैं| पंचम भाव में कुम्भ राशि (पुरुष) है| पंचमेश शनि राहू के साथ सिंह राशि(पुरुष) राशि में हैं और मंगल (पुरुष) से दृष्ट है| राहू और केतु लिंग रहित ग्रह हैं| यहाँ हमने देखा की पंचम-पंचमेश दोनों ओज विषम राशि में हैं| पंचमेश पर मंगल के रूप में एक पुरुषकारक ग्रह की दृष्टि हैं| इस जातक की पहली संतान पुत्र हैं |
पहली संतान पंचम से और दूसरी क्योंकि उसकी अनुज होगी इसलिए दूसरी का विचार पंचम से तीसरे अर्थात सप्तम से होता हैं| नियम उपरोक्त ही रहेंगे परन्तु भाव सप्तम हो जायेगा |दूसरी संतान पर भी इसी तरह विचार करें, सप्तम भाव में कोई ग्रह नही हैं और न ही किसी ग्रह की उसपर दृष्टि है| सप्तम भाव में मेष एक विषम राशि हैं जो पुत्र की सूचक हैं, सप्तमेश मंगल सम(कन्या) राशि में हैं, उस पर शनि की दसवी दृष्टि हैं, जो पुत्री दर्शाती हैं अब यदि निचोड़ देखा जाएँ तो दो प्रभाव पुत्री और केवल एक प्रभाव पुत्र को दर्शाता हैं| जातक की दूसरी संतान पुत्री हैं|
 
उपरोक्त कुंडली में पंचम भाव में मीन राशि में शुक्र चन्द्र की युति हैं और किसी ग्रह की दृष्टि नहीं हैं| पंचमेश गुरु मेष राशि में हैं और मंगल और शनि दोनों से दृष्ट हैं | अब यदि हम सार देखें तो मीन राशि +शुक्र +चन्द्र +शनि  यहाँ ४ प्रभाव पुत्री दर्शाते हैं और (मेष राशि + मंगल की दृष्टि) दो प्रभाव पुत्र के लिए हैं जातक की पहली संतान पुत्री हैं|
इस जातक के पंचम भाव में धनु राशि, ग्रह और दृष्टि दोनों से विहीन हैं, पंचमेश गुरु वृषभ राशि में मंगल से दृष्ट हैं|
सार :- धनु राशि (पुत्र)+ वृषभ राशि(कन्या )+मंगल की दृष्टि (पुत्र)
पुत्र होने की संभावना अधिक आ रही हैं, इस जातक की पहली संतान पुत्र ही हैं|
और दूसरी संतान भी पुत्र ही हैं |
यहाँ संतान पर विचार करते समय हमें यह अवश्य जान लेना चाहिए की कभी गर्भ पात हुआ हैं या नहीं क्योंकि यदि गर्भपात कभी हुआ हैं तो उस भाव को छोड़ कर अगले तीसरे भाव पर जाना चाहिए| उदहारण के लिए प्रथम संतान के बाद गर्भ पात हुआ है तो दूसरी संतान का विचार सप्तम से नही अपितु नवम से करना चाहिए |
यदि कुंडली उपलब्ध न हो तो एक और कारगर उपाय हैं जो की ज्योतिष के प्रकांड ज्ञाता स्वर्गीय बी वी रमण की एक पुस्तक में निहित हैं उसके अनुसार जिस समय जातक यह प्रश्न कर रहा हो उस समय की तिथि, वार और गर्भिणी के नामाक्षर का योग कर लें और उस संख्या में २५ और जोड़ कर ९ से भाग दें यदि शेष विषम आयें तो पुत्र और सम आयें तो कन्या होने की सम्भावना हैं |