Thursday, March 3, 2011

गर्भस्थ शिशु पुत्र या पुत्री ?


गर्भस्थ शिशु के लिंग पर आधारित प्रश्न कई बार पूछे जाते हैं, इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर देने से बचना चाहिए क्योंकि कहीं इस कारण से आप भ्रूण हत्या के दोषी न बन जाएँ| यदि आप आश्वस्त हैं की आपके उत्तर से शिशु पर कोई प्रभाव नही पड़ेगा तभी आप ज्योतिषीय ज्ञान से उत्तर देने का प्रयास करें| लिंग आधारित प्रश्नों के उत्तरों पर कई प्रकार से विचार होता है| उनमे जो प्रमुख हैं वे इस प्रकार हैं :
राशि और ग्रह के योग :- प्रश्न कर्ता यदि प्रथम संतान पर विश्लेषण चाहता हैं तो पंचम भाव में स्थित ग्रह से विचार करें, यदि भाव रिक्त हो तो पंचम भाव पर दृष्टि और तदुपरांत राशि पर ध्यान दें|
इसी प्रकार पंचम भाव का स्वामी की युति, फिर उस पर दृष्टि और अंत में राशि जिस में पंचमेश स्थित है उस पर विचार करें| दोनों में जिस की अधिकता हो उसके अनुसार फल कहें|

उपरोक्त कुंडली में पंचम भाव में केतु स्थित हैं, उस पर शनि (स्त्री/नपुंसक) ग्रह की दृष्टि हैं| पंचम भाव में कुम्भ राशि (पुरुष) है| पंचमेश शनि राहू के साथ सिंह राशि(पुरुष) राशि में हैं और मंगल (पुरुष) से दृष्ट है| राहू और केतु लिंग रहित ग्रह हैं| यहाँ हमने देखा की पंचम-पंचमेश दोनों ओज विषम राशि में हैं| पंचमेश पर मंगल के रूप में एक पुरुषकारक ग्रह की दृष्टि हैं| इस जातक की पहली संतान पुत्र हैं |
पहली संतान पंचम से और दूसरी क्योंकि उसकी अनुज होगी इसलिए दूसरी का विचार पंचम से तीसरे अर्थात सप्तम से होता हैं| नियम उपरोक्त ही रहेंगे परन्तु भाव सप्तम हो जायेगा |दूसरी संतान पर भी इसी तरह विचार करें, सप्तम भाव में कोई ग्रह नही हैं और न ही किसी ग्रह की उसपर दृष्टि है| सप्तम भाव में मेष एक विषम राशि हैं जो पुत्र की सूचक हैं, सप्तमेश मंगल सम(कन्या) राशि में हैं, उस पर शनि की दसवी दृष्टि हैं, जो पुत्री दर्शाती हैं अब यदि निचोड़ देखा जाएँ तो दो प्रभाव पुत्री और केवल एक प्रभाव पुत्र को दर्शाता हैं| जातक की दूसरी संतान पुत्री हैं|
 
उपरोक्त कुंडली में पंचम भाव में मीन राशि में शुक्र चन्द्र की युति हैं और किसी ग्रह की दृष्टि नहीं हैं| पंचमेश गुरु मेष राशि में हैं और मंगल और शनि दोनों से दृष्ट हैं | अब यदि हम सार देखें तो मीन राशि +शुक्र +चन्द्र +शनि  यहाँ ४ प्रभाव पुत्री दर्शाते हैं और (मेष राशि + मंगल की दृष्टि) दो प्रभाव पुत्र के लिए हैं जातक की पहली संतान पुत्री हैं|
इस जातक के पंचम भाव में धनु राशि, ग्रह और दृष्टि दोनों से विहीन हैं, पंचमेश गुरु वृषभ राशि में मंगल से दृष्ट हैं|
सार :- धनु राशि (पुत्र)+ वृषभ राशि(कन्या )+मंगल की दृष्टि (पुत्र)
पुत्र होने की संभावना अधिक आ रही हैं, इस जातक की पहली संतान पुत्र ही हैं|
और दूसरी संतान भी पुत्र ही हैं |
यहाँ संतान पर विचार करते समय हमें यह अवश्य जान लेना चाहिए की कभी गर्भ पात हुआ हैं या नहीं क्योंकि यदि गर्भपात कभी हुआ हैं तो उस भाव को छोड़ कर अगले तीसरे भाव पर जाना चाहिए| उदहारण के लिए प्रथम संतान के बाद गर्भ पात हुआ है तो दूसरी संतान का विचार सप्तम से नही अपितु नवम से करना चाहिए |
यदि कुंडली उपलब्ध न हो तो एक और कारगर उपाय हैं जो की ज्योतिष के प्रकांड ज्ञाता स्वर्गीय बी वी रमण की एक पुस्तक में निहित हैं उसके अनुसार जिस समय जातक यह प्रश्न कर रहा हो उस समय की तिथि, वार और गर्भिणी के नामाक्षर का योग कर लें और उस संख्या में २५ और जोड़ कर ९ से भाग दें यदि शेष विषम आयें तो पुत्र और सम आयें तो कन्या होने की सम्भावना हैं |

1 comment:

संगीता पुरी said...

इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!